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Sunday, August 29, 2010

भ्रष्टाचार

बस अब और नहीं सह सकते ज़ुल्म इस बढती भ्रस्टाचार का

रो रही है भूकी जनता भरता पेट बेमान का



नहीं रही सच्चाई की कीमत बढती इस मेंघाई में

झूट का साथ ले लिया बहुतो ने अपनी भलाई में

कहा गयी वोह देश प्रेम की भावना जिसमे हमने जंग जीती थी

गयी कहा वोह सोच जिसकी नीव पे देश को सजाया था

भूल गए उन शहीदों को जिनने अपनी जान गवई थी

देश की आजादी जीनोने हमें लिए दिलाई थी

कोस रहे होंगे अपने वतन के हालातो पे

देख के इन बिकते जज्बातों को

नहीं रही किसी में इंसानियत

नहीं रहा अपनों के लिए प्यार


मार रहे है एक दुसरे को कौन हिन्दू कौन मुस्लमान

जी नहीं सकते थे एक साथ तोह क्यूँ लड़े हम आजादी को

अभी भी मज़ब धर्मं में डूबे है

बेच के अपने इमानो को

बस अब और नहीं,आओ साथ दे एक दुसरे का

लड़ने में क्या रखा है,बहता है खून बेकसूरों का

हमे धर्मं मज़हब पे लडवाना तो सिर्फ नेताओ का एक बहाना है

लूट लेंगे इस देश की दौलत इसी तरेह उनको सिर्फ कमाना है

मत टूटने दो अपने दोस्ती की बनी हुई नीव को

वतन को पंहुचा दो उन मुकामो पर जहा तर्रक्की कहे रुक जाने को


बढ़ना है आगे हमे सबसे,नहीं छोढ्ना कोई भी आंसू का निशाँ

बढ़ाये इस वतन को आगे और कर ले इस दुनिया को मुट्ठी में

नहीं रुकेंगे अब हम अपनी राहो पे चाहे तकलीफे हो हज़ार

देंगे गरीबी और बीमारी को एक बुरी शिकस्त से मार

देश है हम नौजवानों से हमी है अब इसके भविष्य

अब बस नहीं सहेंगे अत्याचार और मिटायेंगे हर जगह से बेमानो से भरा 


भ्रष्टाचार. 








-Kshitij Chitranshi

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