रो रही है भूकी जनता भरता पेट बेमान का
नहीं रही सच्चाई की कीमत बढती इस मेंघाई में
झूट का साथ ले लिया बहुतो ने अपनी भलाई में
कहा गयी वोह देश प्रेम की भावना जिसमे हमने जंग जीती थी
गयी कहा वोह सोच जिसकी नीव पे देश को सजाया था
भूल गए उन शहीदों को जिनने अपनी जान गवई थी
देश की आजादी जीनोने हमें लिए दिलाई थी
कोस रहे होंगे अपने वतन के हालातो पे
देख के इन बिकते जज्बातों को
नहीं रही किसी में इंसानियत
नहीं रहा अपनों के लिए प्यार
मार रहे है एक दुसरे को कौन हिन्दू कौन मुस्लमान
जी नहीं सकते थे एक साथ तोह क्यूँ लड़े हम आजादी को
अभी भी मज़ब धर्मं में डूबे है
बेच के अपने इमानो को
बस अब और नहीं,आओ साथ दे एक दुसरे का
लड़ने में क्या रखा है,बहता है खून बेकसूरों का
हमे धर्मं मज़हब पे लडवाना तो सिर्फ नेताओ का एक बहाना है
लूट लेंगे इस देश की दौलत इसी तरेह उनको सिर्फ कमाना है
मत टूटने दो अपने दोस्ती की बनी हुई नीव को
वतन को पंहुचा दो उन मुकामो पर जहा तर्रक्की कहे रुक जाने को
बढ़ना है आगे हमे सबसे,नहीं छोढ्ना कोई भी आंसू का निशाँ
बढ़ाये इस वतन को आगे और कर ले इस दुनिया को मुट्ठी में
नहीं रुकेंगे अब हम अपनी राहो पे चाहे तकलीफे हो हज़ार
देंगे गरीबी और बीमारी को एक बुरी शिकस्त से मार
देश है हम नौजवानों से हमी है अब इसके भविष्य
अब बस नहीं सहेंगे अत्याचार और मिटायेंगे हर जगह से बेमानो से भरा
भ्रष्टाचार.
-Kshitij Chitranshi
No comments:
Post a Comment